.......हाँ, मैं औरत हूँ......
हाँ, मैं औरत ही हूँ...
खूद ही को ढूंढते ढूंढते हैरत मे हूँ...
अपना कहने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है
फिर भी मैं अकेली हूँ..
बनाती हूँ दुनिया लुह से और लहु से..
फिर भी बेघर हूँ...
दिलों को जुडाने मे महारथ रखते हुए भी
मेरा जिन्दगी खण्डहर है...
ठुकराए गएओं से लगाव है मुझे
और दिल मे मेरे प्यार का समन्दर है..
तवाही के गहरे दलदल मे फंस कर भी
उजडे हुएओं के घर बचाना चाहती हूँ...
हाँ, मैं औरत हूँ....
From ...
Sachidananda Mishra
हाँ, मैं औरत ही हूँ...
खूद ही को ढूंढते ढूंढते हैरत मे हूँ...
अपना कहने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है
फिर भी मैं अकेली हूँ..
बनाती हूँ दुनिया लुह से और लहु से..
फिर भी बेघर हूँ...
दिलों को जुडाने मे महारथ रखते हुए भी
मेरा जिन्दगी खण्डहर है...
ठुकराए गएओं से लगाव है मुझे
और दिल मे मेरे प्यार का समन्दर है..
तवाही के गहरे दलदल मे फंस कर भी
उजडे हुएओं के घर बचाना चाहती हूँ...
हाँ, मैं औरत हूँ....
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