Sunday, 7 May 2017

काश भूलना इतना आसान होता !

काश
भूलना इतना आसान होता !
सह पाना आसान होते ये तोड़े गए वादे !
गिरते, सम्भलते ,
फिर गिर कर उठते
कसमें खाए न जाते हाथ में मिलाये हाथ,
बिखरे सपनों को सजाते सँवारते
शपथ न दिलाये जाते चलने को साथ साथ ...

ऐसा क्यों होता है मोनालिसा,
ऐसा क्यों हमेशा होता,
इन्सान जो चाहता है दिल से
हरगिज क्यों न बटोर पाता !
भूल नहीं पाता क्यों न कभी
जो छू जाता है दिल से,
वह कभी क्यों लौट पाता नहीं
जो जुट जाता है महफ़िल से ? 

No comments:

Post a Comment