Friday, 14 April 2017

क्या एक जिंदगी काफी है?

क्या एक जिंदगी काफी है?

देखना है तो मेरे आंखों में देख, साक़ी
मुस्कराना है तो दिल में मेरे चोट करके देख लो
मुझे देख, मेरे धड़कनों को परखो
अगर महसूस कर पा रही हो
दावा दारू छोड़ दो..

न जाने कब देखूंगा तुम्हे, ए साक़ी
कब करूँगा महसूस तेरे शरीर के कोमलता को..
क्या एक जिंदगी काफी है
चुम पाना तेरे अनुभबों को?
क्या मैं भर नहीं पाऊंगा तेरे अधकही घावोंको..

तबाह तो हुआ हूँ मैं.. तवाही की मौज भी ले रहा हूँ..
तेरे गुस्सा की क्या तारीफ करूँ
अब तेरे हुश्न की दीदार कर रहा हूँ

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